|| Panchang Vaastu ||
|| Vaastu Shastra ||
Slogan
अमत्यशश्चिव मत्यश्चि यत्र यत्र वसन्ति हि ।
तद् वास्त्विति मतं तज्जञैस्तद्धेदं च वदाम्यहम् ।।
भूमिप्रासादयानानि शयनं च चतुर्विधम्।
भूरेव मुख्यवास्तु स्यात् तत्र जातानि यानि हि ।।
वास्तुशास्त्र का उद्रव वैदिककाल में ही हो गया था। सृष्टि के आरम्भ से ही इस
शास्त्र के अंतर्गत ब्रह्माण्ड में स्थित सौर परिवार (ग्रहो) के प्रभावों का विस्तार से विचार
किया गयाहे | इनके अतिरिक्त नक्षत्र, राशि, योग, दिशा, करतु, पंचतत्त्व एवं धुवादि के
आकर्षण- विकर्षण का सम्यक् अध्ययन सम्मिलित है । वास्तुशास्त्र का अनन्य संबंध
कालशास्त्र अर्थात् ज्योतिषशास्त्र से अनादि काल से हॅ।
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